Monday, September 20, 2010

जन्मभूमि विवाद: ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर होगा फैसला

24 सितंबर को रामजन्मभूमि विवाद पर ऐतिहासिक फैसला आयेगा। मामले की पेचीदगी को देखते हुए इस बात की संभावना कम ही है कि न्यायालय का फैसला दोनों पक्षों को मान्य होगा। हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रास्ता खुला ही रहेगा लेकिन फिर भी बेंच का फैसला इस दिशा में अहम हो सकता है। कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक तथ्यों के आलोक में होगा। इसलिये यह देखना महत्वपूर्ण हो जाता है कि विवादित स्थल के संबंध में ऐतिहासिक तथ्य किस दिशा में इशारा देते हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के कहने पर इस संबंध में पुरातत्व विभाग ने विवादित क्षेत्र में एक अहम सर्वे किया है। सर्वे में पाया गया है कि अयोध्या में सबसे पुरानी बस्ती दसवीं सदी ईसा पूर्व रही होगी। यहां से एनबीपीडब्ल्यू मृदभांड पाये गये हैं जो स्पष्ट रूप से बुद्ध के समय के हैं। रामायण के अतिरिक्त बुद्धकालीन पाली ग्रंथों में भी अयोध्या की चर्चा है। अयोध्या का संस्कृत में अर्थ होता है जिसे जीता न जा सके। शुंगकाल में अयोध्या में ऐतिहासिक गतिविधि तेजी से बढ़ी। यहां पुष्यमित्र शुंग के अहम अवशेष प्राप्त होते हैं। ग्यारहवी सदी के कोरियन इतिहासकार सामजुक सुंग ने अपने इतिवृत में लिखा है कि 48 ई में एक कोरियन राजकुमारी तीर्थयात्रा के लिये सागर पार कर अयोध्या गई थी। हो सकता है यह अयोध्या थाईलैंड की प्राचीन राजधानी आयूथिया हो लेकिन अयोध्या का नाम वैश्विक लैंडस्कैप पर तब भी लिखा जा चुका था। एएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक विवादित स्थल में पहला ढांचा मित्र राजाओं का है। इसके बाद कुषाणों की भी सामग्री यहां मिली है। महत्वपूर्ण यह है कि विदेशी यात्रियों में सबसे ज्यादा प्रखर नजर रखने वाले हुएनसांग ने अयोध्या को मंदिरों की नगरी कहा लेकिन जहां तक रामजन्मभूमि की बात है हुएनसांग इस संबंध में विशेष जानकारी नहीं देता। 1992 में अयोध्या में ढांचा गिराये जाने के बाद इसके नीचे से एक अभिलेख प्राप्त हुआ जिसे विवादित ढांचे के संबंध में काफी अहम माना जा रहा है। अभिलेख गाहड़वाल वंश के सबसे यशस्वी राजा गोविंदचंद्र का है। इसमें कहा गया है कि उत्तर भारत का यह सबसे बड़ा मंदिर विष्णु की पूजा के लिये बनाया गया है। इसके साथ ही वामन अवतार से जुड़ी कुछ मूर्तियां भी निकलीं। तुलसीदास के अनुसार अयोध्या भारत के प्रसिद्ध तीर्थों में से था लेकिन जहां तक विष्णु स्मृति की बात है भारत के महत्वपूर्ण 21 तीर्थस्थलों में यह अयोध्या को नहीं जोड़ता।
बाबर की डायरी बाबरनामा इस संबंध में जानकारी देने के लिये काफी अहम हो सकती थी लेकिन इसके कुछ पन्ने जो उसी वर्ष लिखे गये जिस समय बाबर अवध के प्रसार पर था, गायब हो चूके हैं। बताया जाता है कि बाबर जब कूच पर था तब एक बड़ी आंधी आई जिसने इन महत्वपूर्ण वर्षों के सारे दस्तावेज उड़ा दिये। गौरतलब है कि बाबर ने पूरी दिलचस्पी के साथ भारत के सारे दस्तावेज लिखे हैं और किस प्रकार चंदेरी का हश्र हुआ इस बाबत भी विस्तृत रूप में लिखा है।
हिंदू और मुस्लिम दोनों सामग्रियां अपने धर्म की गवाही कर सकती हैं इसलिये धर्मनिरपेक्ष स्रोतों से भी पड़ताल करना जरूरी है। टीफैन्थेलर ने जिन्होंने भारत में सबसे पहले अशोक के अभिलेख खोजे, बाबरी मस्जिद के बारे में लिखा है कि इसका निर्माण औरंगजेब अथवा बाबर ने किया। उन्होंने लिखा है कि हिंदू इस अहाते के सामने राम का जन्मदिन रामनवमीं हर साल मनाते हैं।
इस संबंध में पहली बार विवाद वाजिदअली शाह के समय हुआ जब निर्वाणी संप्रदाय के हिंदुओं ने पहली बार इस संबंध में आवाज उठाई। फिलहाल मामला कोर्ट के पाले में है बाबरी मस्जिद 1992 तक अस्तित्व में थी और इसके नीचे एक ढांचा भी, जिसे विहिप प्राचीन मंदिर कहते हैं। कोर्ट का जो भी फैसला होगा, इन्हीं तथ्यों के आधार पर होगा।

1 comment:

  1. गोविंदचन्‍द गहड़वाल के 13 वीं सदी के एक शिलालेख की चर्चा होती है, इस पर भी आपसे जानकारी अपेक्षित है.

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद