Tuesday, November 1, 2011


क्या यह भयानक समय है?

रौशन होर्डिंग्स में सुंदरियों की मुस्कानरेखा देखते हुए,

जब मैं राजधानी की रेशमी सड़कों से गुजरता हूँ,

सिविल लाइन में बने भव्य बंगलों से गुजरते हुए,

उनके इंटीरियर की तुलना गोथिक शैली से करता हूँ,

अबाधित ब्राडबैंड स्पीड के बीच जब फेसबुक के फीचर की तुलना गूगल प्लस से करता हूँ,

टैक सेवी होने का दंभ भरता हूँ,

सिटी मॉल में आइनाक्स में बैठा हुआ स्विट्जरलैंड के नजारे देखता हूँ,

तब सोचता हूँ कि मैं कितने खुशकिस्मत समय में हूँ?

यद्यपि मेरी किस्मत में फूल नहीं, उनकी खुशबू जरूर है

जैकपॉट खुला होता तो हैरिटेज होटल और रिसार्ट्स की तफरीह भी हो पाती,

एक पाँव जमीं में और एक आसमान पर होता,

इतना खुशकिस्मत समय?

फिर भी कुछ लोग क्यों इस समय को कोस रहे हैं,

ऐसे समय को जन्नत है जो एचजी वैल्स की टाइम मशीन को जीता है,

क्या वो उन जंगलों की चिंता कर रहे हैं जहाँ के बाशिंदे अब एंटीक पीस बनने जा रहे हैं हमारी दुनिया के लिए नुमाइश की चीज...

क्या उन्होंने बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट में बने फार्मूला वन रेस ट्रैक की भव्यता को नहीं देखा?

क्या उन्होंने सर्किट में पॉप गायिका गागा को गाते हुए नहीं सुना?

सर्किट में सिद्धार्थ माल्या की बाँहों में झूलती दीपिका पादुकोण की अदाएँ उन्हें क्यों नहीं भातीं?

उन्हें आखिर कब समझ आएगा कि सिद्धार्थ के पिता विजय माल्या ने गाँधी की घड़ी खरीद ली है और अब समय भी उनका है?

इतने खुशकिस्मत समय में वो रुदालियों की तरह प्रलाप क्यों कर रहे हैं?

(बर्तोल्त ब्रेख्त की भयानक खबर की कविता से प्रेरित, अनुभव को शुक्रिया जिसने मुझे फिर से कविता लिखने की प्रेरणा दी)

5 comments:

  1. बहुत ही बढि़या लिखा है ... ।

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  2. बहुत उम्दा ...सतत लेखन की शुभकामनायें

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  3. सुन्दर चिंतन! मुझे लगता है कि विरोधाभास रहेंगे ही, पर अपनी सोच/कृति को उदात्त अवश्य बनाना चाहिये।

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  4. इतना खुशकिस्मत समय?
    यह कहते हुए लेखनी कई कई विरोधाभासों से गुजरी है...!
    अभिव्यक्ति नित नए आयाम पाए... अनूठे विम्ब गढे हैं आपने कविता में!
    लिखते रहें!
    शुभकामनाएं!

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद