Tuesday, December 11, 2012

खुशवंत को लिखते देखना अच्छा लगता है

सोचिए कि अगर आपका प्रिय लेखक लिखना बंद कर दे तो आपके लिए यह किस तरह का अनुभव होगा। पिछले एक महीने से खुशवंत सिंह के कॉलम न देखकर मेरे मन में उनकी तबियत के प्रति अज्ञात आशंकाएं होने लगी थीं लेकिन खुशवंत सचिन की तरह ही हैं जब भी आलोचक प्रश्न खड़े करते हैं वो अपनी उपस्थिति दिखा देते हैं। आज खुशवंत सिंह के तीन कॉलम हिंदुस्तान टाइम्स में पढ़े।
                                                                                                                 मैं ईश्वर से दुआ करूँगा कि खुशवंत हमेशा स्वस्थ रहें, उन्हें मौत भी नींद के झोंके में आए और अंत तक वे जोक के मूड में रहें। उनकी एक महिला प्रशंसक ने एक सूफी संत का धागा उन्हें दिया भी है जो उन्हें हमेशा स्वस्थ रखेगा।  वैसे उनका लेखन इतना व्यापक है कि वे हर दिन हमें याद आते रहेंगे।  परसों यहाँ की एक बुकशॉप में जाना हुआ था वहाँ मुझे यह सुखद आश्चर्य हुआ कि खुशवंत की अनेक पुस्तकों का हिंदी अनुवाद मौजूद हैं। खुशवंत के अलावा कोई भी ऐसा अंग्रेजी लेखक नहीं था जिसकी पुस्तकों का अनुवाद उनके यहाँ हो।
                                                                                                               खुशवंत का लेखन भारत के अभिजात्य तबके के बुद्धिजीवियों का इतिहास है। औपनिवेशिक दौर के अप्रवासियों से लेकर एनआरआई भारतीयों के अनुभव से उनके लेखन का गुलदस्ता सजा है। उनकी शाम की पार्टियाँ बेहद आकर्षक रहती होंगी, अपनी वाइन को लेकर नहीं, उस बौद्धिकता को लेकर जो इन महफिलों में अपने शबाब पर होती है। 
                                                                                                                                                   कोई मुझसे पूछे कि कामयाबी क्या है तो मैं ये कहूँगा कि किसी ने आपसे मीटिंग तय की है किसी डील के लिए नहीं, किसी सिफारिश के लिए नहीं, सौजन्य के लिए नहीं अपितु आपके सानिध्य का आनंद लेने के लिए। खुशवंत ऐसे ही हैं ऐसे बुजुर्ग जिनके साथ के लिए यौवन के पहली पायदान चढ़ने वाले युवा भी तरसते हैं।
                                                                                                                                                 मैं खुशवंत की तरह नहीं हूँ मैं स्ट्रेट फारवर्ड नहीं हूँ। लोगों से जल्दी घुलता-मिलता नहीं फिर भी वो मेरे प्रिय पत्रकार हैं। मुझे उनकी आध्यात्मिक रुचि बहुत पसंद है। वे धर्म की व्याख्या कठिन शब्दों में नहीं करते बल्कि सूफी रूहानियत में करते हैं।
                                    नेताओं को बिंदास गाली और व्यंग्य भी खुशवंत की खास विशेषता है जो उन्हें सबसे खास बनाती है। उनकी पत्रकारिता का जलवा इसी बात से पता चलता है कि जब उन्होंने मदनलाल खुराना पर अपने कालम में लिखा तो खुराना गदगद हो गए और पूरी मीडिया के सामने इसे भावुक स्वर में बताया।
                                                                                                                                            खुशवंत लिख रहे हैं ये हमारी खुशफहमी है भगवान करे, वे शतायु हों, वाहेगुरु उनके स्वास्थ्य की रक्षा करें।
        

1 comment:

  1. सौरभ जी ,मेरी एक टिप्पणी शायद आपके स्पेम में पड़ी है .....उसे देखें !
    आज की पोस्ट पर खुशवंत जी को आप के मांगी हुई दुआओं के साथ मेरी भी दुआ शामिल है ...
    आप को पढना अच्छा लगता है !
    शुभकामनायें!

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद