Tuesday, April 9, 2013

मार्गरेट थैचर का जाना

आज सुबह टाइम्स आफ इंडिया में खबर पढ़ी, मार्गरेट थैचर नहीं रही। वो नींद में ही दुनिया छोड़कर चली गईं। मुझे बहुत सुख मिला क्योंकि वो नींद में चल बसी, यह सबसे अच्छी मौत है नहीं तो इस सुंदर दुनिया को विदा करना मौत के दूसरे रास्तों से बहुत कठिन होता होगा। मार्गरेट थैचर को मैं बहुत पहले ही भूला चुका था, कुछ लोग सार्वजनिक जीवन से गायब हो जाते हैं और अक्सर उनकी खबर तब मिलती है जब उनकी मौत हो जाती है। नेता इस मामले में भी भाग्यशाली रहते हैं कि वे सार्वजनिक जीवन से कभी गायब नहीं होते। ऐसा कलाकारों के साथ होता है। मसलन गुजरे जमाने की कलाकार नलिनी जयवंत नहीं रही, वे अरसे से अपने फ्लैट में अकेले रह रही थीं।
                                 मार्गरेट के भाषण मैंने यूट्यूब पर सुनें, उनका कहा हुआ सुना और मार्गरेट के बहाने अपने अतीत को भी याद किया। मार्गरेट छुटपन की सबसे पहली स्मृति है तब गोर्बाच्येव सोवियत राष्ट्रपति थे, रीगन अमेरिकी राष्ट्रपति और मार्गरेट ब्रिटिश प्रधानमंत्री।
                         आश्चर्य की बात है कि इतने छुटपन में भी मैंने ब्रिटिश राजनीति में रुचि ली, इसका कारण मुझे अपने अतीत में मिलता है। दो सौ साल तक अंग्रेज हमारे देश में रहे, हमारे पुरखों ने उन्हें देखा, उनके साथ काम किया, हमारे भीतर अपने पुरखों का अंश है इस नाते हम भी इस घटना के साक्षी हैं सो मार्गरेट थैचर के बारे में मैं खबरें पढ़ता था।
                      थैचर के बाद जॉन मेजर प्रधानमंत्री बनें, उनमें मुझे करिश्मा नजर नहीं आया, सिर्फ एक खबर जिसने मुझे मेजर के बारे में कुछ गहराई से सोचने मजबूर किया, वो ये थी कि जब मेजर को जानकारी मिली कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद के लिए उनका दावा किए जाने की तैयारी है तब वे घुड़दौड़ देख रहे थे और उनके चेहरे पर किसी तरह के भाव नहीं थे।
                       सबसे बुरी स्मृति टोनी ब्लेयर की है। उनकी पहचान अमेरिका के पिछलग्गू के तौर पर बनीं। रायपुर में रहने के बावजूद मैं घासीदास संग्रहालय नहीं देख पाया था, मैंने सुना था कि यहाँ ब्रिटिश हाईकमिश्नर मि. यंग आये थे, जब वे आए थे तो उन्हें राजीव लोचन महात्म्य की एक कॉपी दी गई थी, मि. यंग चूँकि संस्कृत के भी विद्वान थे, इसलिए उन्होंने वादा किया कि वे इसे पढ़ेंगे और इस पर टीका भेजेंगे। खैर इस वर्णन को सुनने के बाद मेरी संग्रहालय जाने की इच्छा हुई। जब मैं पहुँचा तो दो ब्रिटिश टूरिस्ट भी वहाँ पहुँचे थे, मैंने उनसे टोनी ब्लेयर के बारे में राय पूछी, उन्होंने बहुत बुरी गाली दी। टोनी ब्लेयर की एक अच्छी स्मृति भी रही, जब वे और चेरी ब्लेयर अपने तीन बच्चों के साथ दिल्ली आए, तब चेरी ने साड़ी पहनी हुई थी और बहुत खूबसूरत लग रही थीं।
                           दुनिया में ब्रिटिश प्रधानमंत्री के घटते रौब की बानगी इस बात से समझ आती है कि मुझे गार्डन ब्राउन के वक्त के नस्ली दंगों के सिवा कुछ भी उनके कार्यकाल के बारे में याद नहीं आता। डेविड कैमरन की स्मृतियाँ भी बहुत क्षीण हैं और अगर वे जलियाँवाला बाग नहीं आते तो मैं शायद नये ब्रिटिश प्रधानमंत्री का नाम भी नहीं जानता।
              रिश्ते जब दूर के होते जाते हैं तो स्मृतियां भी कमजोर होने लगती हैं। आजादी ज्यों-ज्यों खिसक रही है ब्रिटिश प्रधानमंत्री के साथ हमारे रिश्तों की डोर भी कमजोर हो रही है। मार्गरेट के रूप में ऐसी ही एक डोर हमारे हाथ से हमेशा के लिए छूट गई।

1 comment:

  1. ब्रिटेन का रसूख तो समय के साथ कम होना ही है। संयोग है कि यह आलेख पढ़ने से ठीक पहले रानी को कोहिनूर का मुकुट पहने देखा तो यूं ही मन मे आया कि जिन जीवित इन्सानों को ब्रिटिश राज में जबर्दस्ती पकड़कर परिवार से दूर कर जंजीरों से बांधकर नोचा, खरीदा, बेचा, मारा गया उनका जीवन तो आज वापस नहीं आ सकता लेकिन रानी अपने पूर्वजों की डकैती की क्षमा मांगकर कोहिनूर तो वापस कर ही सकती हैं। खैर, विषय पर वापस आता हूँ। नींद के बिना दुनिया छोड़ना वाकई दुखद है।
    - आयरन लेडी को अंतिम सलाम!

    ReplyDelete


आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद