Thursday, November 20, 2014

बनारस यात्रा 1


 बनारस में नौका विहार करने के दौरान दो तरह के दिलचस्प यात्रियों के आगमन का वर्णन नाविक की जुबानी मिला। पहला नीता अंबानी का जिन्होंने अपना जन्मदिन इस बार बनारस में मनाया, उनके साथ 65 लोगों का स्टाफ आया, वे ताज इन और रेडिसन में ठहरे थे। किराया था 55 हजार रुपए-एक दिन। फिर राजे-रजवाड़ों का जिक्र आया। होल्कर, पेशवा, सिंधिया, राणा, कछवाहा, दरभंगा, नेपाल के ललिता। इन सबने गंगा किनारे घाट बनाए। पूछा क्या अब आते हैं रजवाड़े, नाविक ने कहा, नहीं इन्होंने बनारस छोड़ दिया। अब इन पर बड़े होटल्स हैं। दरभंगा का घाट अभी हाल ही में बिका, 140 करोड़ रुपए में। नाविक से पूछा कितना कमाते हो, बताया कि हर दिन दस हजार रुपए की कमाई हो जाती है। दशाश्वमेध घाट के पीछे पुरखों का घर है। उसके चेहरे पर संतोष का गहरा भाव था। जैसे शिव की नगरी में हर दिन हजारों लोगों को पुण्य यात्रा करा रहा हो।
 नौका विहार दशाश्वमेध घाट से अर्थात प्राचीन रूद्र सरोवर से शुरू हुआ। फिर एक खूबसूरत अनुभव में यह सफर बदलता गया। नदी से इतना सुंदर दृश्य और इतनी सुंदर पटकथा मैंने कभी किसी श्रीमुख से नहीं सुनी थी। जितनी मल्लाह ने बताई। देखिए ये बचुआ पांडेय घाट है पंडों का घाट, इधर नारद घाट कभी इसमें पति-पत्नी मिलकर न नहाएँ, नहीं तो लड़ाई तय है। यह श्रीमंत पेशवा का घाट है संभवतः कभी ऐसे ही स्नान के दौरान मोरोपंत ने पेशवा से रानी लक्ष्मी बाई को मिलाया हो। राजा हरिशचंद्र घाट और डोम राजा का घर। नाव वाले ने बताया कि डोम राजा के वंशज अब भी अपने महल में रहते हैं जो उनके घाट में बना है। इसके बगल से ललिता घाट है जो नेपाल के रजवाड़ों ने बनाया है। बिल्कुल बगल से एक भवन था जिसमें विधवा महिलाएं अपना समय गुजारती थीं और अब भव्य होटल है। इसके बगल से मानमंदिर है पीछे जंतर-मंतर सवाई राजा जयसिंह का। मान महल का नया रंगरोगन किया जा रहा था। प्लास्टर आफ पेरिस जो इमारतों को इतना सुंदर बना देता है वह मान महल को बदरंग कर रहा था। ऐसा लग रहा था कि अगर सारे घाट दरभंगा और मानमहल की तरह बिक गए तो बनारस समाप्त हो जाएगा। जैसे रेशम में पैबंद विचित्र लगता है वैसे ही पैबंद में भी रेशम लगा दें तो यह भी विचित्र ही लगेगा। शायद पुरानी इमारतों में एक अजीब किस्म की चमक आ जाती है जिसे इतिहास के प्रेमी ही देख पाते हैं मानमहल की ट्रैजडी केवल उन्हीं के लिए है।
लौटकर घाट पर पहुँचकर गंगा आरती देखना अविस्मरणीय अनुभव था। हम दशाश्वमेध घाट पर बैठे और एक घंटे गंगा आरती देखी। घाट पर भक्तजनों, पर्यटकों और विदेशी यात्रियों का जनसमूह था, कुछ नावों पर, कुछ घाटों में और कुछ छतों में। अच्युतं माधवं राम नारायणं के साथ जब आरती शुरू हुई तो मन में जो भाव उतरे, उन्हें शब्दों में उभारना मेरे लिए काफी कठिन है। शिव जी जब भी काशी आते होंगे, दिन भर कहीं भी गुजारे शाम को अपना त्रिशूल दशाश्वमेध घाट में गाड़ देते होंगे।
फिर अगले दिन बनारस की गलियों को। गौदोलिया से रिक्शा लिया और मैदागिन तक का सफर किया। रिक्शे में गुजारे 20 मिनट अब तक की सबसे मनोरंजक यात्राओं में से है। जब सफर शुरू किया तो देखा कि एक जापानी महिला और पुरुष ने अपना मोबाइल रिक्शे में एक स्टैंड में फंसा लिया था और बनारस का पैनोरैमिक व्यू ले रही थी। शायद अपनी रुचि से हो या हो सकता है कि वो जापान के किसी ऐसे प्रोजेक्ट का हिस्सा हो जो इसे क्योटो के तर्ज पर विकसित करने की तैयारी कर रही हो। पुराना बनारस ओल्ड इंडियन फोटोग्राफी के लाहौर की याद दिलाता है और मुगल काल की पुरानी दिल्ली की हवेलियाँ भी दिमाग में ताजा हो जाती है। हम एक बहुत पुराने समय में पहुँच जाते हैं जैसे अभी गंगा नहीं नहा आये, पूरी परंपरा से ऊर्जस्वित स्नान किया हो।

1 comment:

  1. पढ़कर अच्छा भी लगा और मन बुझ सा भी गया। सनातन नगरी ने काल को लंबे समय तक कैद करके रखा लेकिन सदा-सनातन तो शायद कुछ भी नहीं, शायद काशी भी नहीं। काशी का क्या किसी भी भारतीय नगर का कभी क्योटोकरण हो पाये यह तो असंभव ही है लेकिन होटलवाले काशी को आगरा, मुंगेर या मुंबई तो बना ही सकते हैं। (क्योटो अपने भवनों से नहीं अपने निवासियों की उस अद्वितीय विनम्रता से बनाता है जिसे समझ पाना भी किसी भारतीय पर्यटन स्थल के व्यवसायियों, ठगों, लुटेरों और सरकारी, अर्ध-सरकारी कर्मियों के लिए असंभव है)

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद