खेल-खेल में मेरी पाँच साल
की भांजी ने मेरी बेटी से कहा कि मानु ऐसा मत कर तुझे पाप लग जाएगा। मेरी बेटी ने
पूछा कि पाप क्या होता है। भांजी ने बताया कि गंदा काम करने पर भगवान नाराज हो
जाते हैं फिर सजा देते हैं। इतने मासूम बच्चों के शब्दकोष में पाप कहाँ से आ गया।
शायद यह पुरानी पीढ़ी के शब्दकोष से लुढ़ककर वहाँ चला आया हो, जहाँ से उसे
बहिष्कृत कर दिया गया है।
बड़ों के शब्दकोष में जहाँ
पाप रहता हो, शायद वहाँ उसकी जगह डर ने ले ली है। जहाँ पहले पाप का डर होता था अब
केवल भय पसर गया है। यह किसी भी तरह का हो सकता है एंटी करप्शन, ज्यूडिशरी, प्रेशर
ग्रूप, ईश्वर की दंड संहिता से परे हर प्रकार के दंड का भय। हम बड़े होते गए और
ईश्वर देख रहा है शब्द हमारे लिए बेमानी होता गया। ईश्वर ने पूरे बचपन भर हमारी
निगरानी की और फिर हमें छोड़ दिया। अपने पापों के साथ, अपने डर के बीच अकेले।
शायद हमसे पिछली पीढ़ी को
पाप और पुण्य की चिंता रही और उनका पूरा जीवन इसे संतुलित करने में लग गया।
राजे-महाराजों ने जनता का शोषण किया, इस पाप को मिटाने के लिए मंदिर बना दिए,
व्यापारियों ने इन्हें अकूत धन से लाद दिया। ब्राह्मणों ने इनमें पूजा कर अपने
पुण्य संतुलित कर दिए।
पहले के जनकल्याणकार्य
पुण्य के लिए भी कर लिए जाते थे। तालाब खुदवाए जाते थे, गरीबों को दान कर दिया
जाता था। ज्योतिष ग्रंथों और पुराणों में पुण्य कार्य की लंबी-चौड़ी सूची है।
पुण्य जमा करने की कोशिश हमारे संसार को भी सुंदर बना जाती थी और इतिहास को भी।
कितने शहरों और कस्बों का इतिहास हम इसी पुण्य गाथा की वजह से लिख सके। अगर
अहिल्याबाई की अमिट पुण्य पिपासा नहीं होती तो क्या हम हर पवित्र भारतीय शहर में
एक सुंदर मंदिर और उनकी नदियों के किनारे सुंदर घाटों की झांकी देख पाते।
यदि बिड़ला पाप-पुण्य के
चक्कर में नहीं फंसे होते तो क्या भारत के आधुनिक नगरों में भक्ति की अजस्त्र धारा
वैसे ही प्रवाहित हो रही होती। मुझे दिल्ली का एक प्रसंग याद है तब मैं छठवें
सेमेस्टर की पढ़ाई कर रहा था और इस उम्र में दिलोदिमाग से आध्यात्मिकता सिरे से
गायब रहती है तब हम टूरिस्ट के रूप में दिल्ली के बिड़ला मंदिर गए। वहाँ भजन चल
रहा था मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ। मैंने यह भजन पहले भी सुना था
लेकिन इससे इतना सुख पहले कभी नहीं मिला था जितना उस दिन मिला। बिड़ला ने केवल
मंदिर नहीं बनाया, वहाँ ऐसी व्यवस्था भी की ताकि लोग सही तौर पर हिंदू धर्म का
मर्म जान पाएँ। उनके पोते कुमारमंगलम बिड़ला शायद उस तरह से धार्मिक नहीं है इसलिए
बिड़ला परिवार के प्रति लोगों की श्रद्धा अब वैसी नहीं रही।
बाइबिल की सबसे मशहूर कहानी
आदम और हौव्वा का स्वर्ग के बगीचे से निष्कासन का कारण भी वर्जित फल खाना था जो एक
पाप था। सृष्टि पाप से पैदा हुई लेकिन इस पाप से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य ने जो
जतन किए उसने सभ्यता को कितना सुंदर बनाया। चाहे बुद्ध की करूणा हो, कृष्ण का रास
हो या ईसा की सहनशीलता, क्या इन सबका सृजन इंसानियत की उस महान कहानी से नहीं हुआ
जिसमें वर्जित फल को खाने की सजा भोगने पड़ी।
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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद